हमारे चारों ओर की वास्तुओ के प्रकाश के खेल हमें बहुत –सी रमणीय परिघटनाएँ देते है /हमारे चारों ओर हर समय दिखाई देने वाले भव्य रंग सूर्य के प्रकाश के कारण ही संभव है / आकाश का नीला प्रतीत होना, श्वेत बादल , सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय आकाश की लालिमा , इन्द्रधनुष , कुछ पंक्षियों के पंखो , सीपियों , शंखो एवं मोतियों की रंग –बिरंगी चमक कुछ ऐसे अद्भुत एवं आश्चर्यजनक प्राकृतिक चमत्कार हैं , जिनसे हम भली –भाँती परिचित हैं और हम उनके अभ्यस्त हो चुके हैं

इंद्रधनुष :-इंद्रधनुष वायुमंडल में उपस्थित जल की बूंदों के द्वारा प्रकाश के परिक्षेपण का एक उदाहण हैं / यह सूर्य के प्रकाश का जल की गोलीय सूक्ष्म बूंदों द्वारा परिक्षेपण , अपवर्तन तथा आंतरिक परावर्तन के संयुक्त प्रभाव की परिघटना है / इन्द्रधनुष देखने के लिए आवश्यक शर्ते ये हैं कि सूर्य आकाश के किसी एक भाग (मान लीजिए पश्चिमी छितिज़ ) में चमक रहा हो जबकि आकाश के विपरीत भाग (मान लीजिए पूर्वी छितिज़ ) में वर्षा हो रही हो | इस प्रकार कोई भी इन्द्रधनुष तभी देख सकता है जब उसकी पीठ सूर्य कि और हो |
सूर्य का प्रकाश सर्वप्रथम वर्षा कि बूंद में प्रवेश करते समय अपवर्तित होता है , जिसके कारण स्वेत प्रकाश का तरंगदैर्घ्य (वर्ण) पृथक हो जाते है| प्रकाश कि उच्च तरंगदैर्घ्य (लाल) सबसे कम मुड़ती है जबकि निम्न तरंगदैर्घ्य (बैगनी) सबसे अधिक मुड़ती है| इसके पश्चात ये संघटक किरणें बूंद के भीतर पृष्ट से टकराती है पर अभिलंब और अपवर्तित किरण के बीच का कोण क्रांति कोण (इस प्रकरण में48०) से अधिक है तो आन्तरिकतः परावर्तित हो जाती है| यह परावर्तित प्रकाश, बूंद से बाहर निकलते समय पुनः अपवर्तित हो जाती है| यह पाया जाता है कि सूर्य से आने वाले प्रकाश के सापेक्ष बैंगनी प्रकाश 40० के कोण पर तथा लाल प्रकाश 42० के कोण पर निर्गत होता है| अन्य वर्णों के लिए कोणों के मान इन दोनों के मध्य होता है |