यह प्रश्न मानव जाति को लम्बे समय तक परेशान करता है | लगभग चार शताब्दी पहले , वैज्ञानिक तथा औधोगिक युग के प्रारंभ समय से ही वैज्ञानिकों द्वारा क्रमबद्ध प्रयोग किए गए | लगभग उसी समय , प्रकाश क्या हैं , इस संबंध में सैध्दांतिक मॉडल विकसित किए गए | विज्ञान की किसी भी शाखा में कोई मॉडल विकसित करते समय यह देखना आवश्यक है , कि यह उस समय विद्यमान सभी प्रायोगिक प्रक्षणों की व्यख्या कर सके | इसलिए , सत्रहवीं शताब्दी में प्रकाश के विषय में ज्ञात कुछ प्रेक्षणों का संक्षेपण उपयुक्त रहेगा |

उस समय ज्ञात प्रकाश के गुणों में सम्मिलित थे – (a ) प्रकाश का सरल रेखीय पथ पर गमन , (b) समतल तथा गोलीय पृष्ठों से परावर्तन , (c) दो माध्यमों के आन्तरापृष्ठ पर अपवर्तन , (d) विभिन्न वर्णों में प्रकाश का विपेक्षण , (e) उच्च चाल | पहली चार परिघटनाओं के लिए उचित नियमों को प्रतिपादित किया गया | उदाहरण के लिए, स्नेल ने सन 1621 में अपवर्तन के नियमों को सूत्रबद्ध किया | गैलिलियो के समय से ही अनेक वैज्ञानिकों ने प्रकाश की चाल को मापने का प्रयत्न किया |लेकिन वे ऐसा करने में असमर्थ रहे | वे केवल यह निष्कर्ष निकाल पाए कि प्रकाश की चाल उनकी माप की सीमा से अधिक है |
सत्रहवीं शताब्दी में प्रकाश के दो मॉडल प्रस्तुत किए गए | सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में दकार्ते ने प्रतिपादित किया कि प्रकाश कणों से बना है , जबकि सन 1650-60 के आस पास हाइगेंस ने प्रस्तुत किया कि प्रकाश तरंगों से बना है | दकार्ते का प्रस्ताव मात्र एक दार्शनिक मॉडल था| जिसमें प्रयोगों अथवा वैज्ञानिक तर्कों का अभाव था | शीघ्र ही , लगभग 1660-70 के आस पास न्यूटन ने दकार्ते के कणिका सिद्धांत का वैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में विस्तार किया था इसकी सहयता से प्रकाश के अनेक गुणों की व्याख्या की गई | तरगों के रूप में तथा कणों के रूप में प्रस्तुत करने वाले ये मॉडल एक दूसरे के बिलकुल विपरीत हैं | लेकिन दोनों ही मॉडल प्रकाश के सभी ज्ञात गुणों की व्यख्या करने में सक्षम थे| इन दोनों में से किसी को भी छाँटना कठिन था | आगामी कुछ शताब्दियों में इन मॉडलों के विकास का इतिहास मनोरंजक है | सन 1669 में , बरथोलिनस ने कुछ क्रिस्टलों में प्रकाश के द्विअपवर्तन की खोज की तथा शीघ्र ही सन 1678 में हाइगेंस ने अपने तरंग सिद्धांत के आधार पर इसकी व्याख्या की | इसके बावजूद , एक सौ वर्ष से भी अधिक समय तक न्यूटन का कणिका मॉडल अधिक विश्वसनीय माना जाता रहा तथा तरंग मॉडल की अपेक्षा अधिक पसंद किया जाता रहा |
इसका एक अंशत: कारण तो इस मॉडल की सरलता थी| अंशत: उस समय के समकालीन भौतिकशास्त्रियों पर न्यूटन का प्रभाव था | सन 1801 में यंग ने अपने द्विझरी प्रयोग द्वारा व्यतिकरण फ्रिंजों का प्रेक्षण किया | इस परिघटना की व्याख्या केवल तरंग सिद्धांत द्वारा ही की जा सकती है | यह भी अनुभव किया गया कि विवर्तन एक अन्य परिघटना होता है जिसकी व्याख्या केवल तरंग सिद्धांत द्वारा ही की जा सकती है | वास्तव में यह प्रकाश के पथ में प्रत्येक बिंदु से निर्गमन होने वाली हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिका का स्वभाविक निष्कर्ष है | इन प्रयोगों की प्रकाश के कणिका सिद्धांत द्वारा व्याख्या नहीं की जा सकती | लगभग सन 1810 में ध्रुवण की परिघटना की खोज हुई | इस परिघटना की व्याख्या भी तरंग सिद्धांत द्वारा ही स्वभाविक रूप से की जा सकती है | इस प्रकार हाइगेंस का तरंग सिद्धांत अग्रभाग में आ गया तथा न्यूटन का कणिका सिद्धांत पृष्ठभूमि में चला गया | यह स्थिति पुन: लगभग एक शताब्दी तक चलती रही |