लेसर प्रकाश

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किसी  भीड़ –भाड़ वाले बाजार या रेलवे प्लेटफार्म कि कल्पना कीजिए जहाँ बहुत से मनुष्य एक द्वार से प्रवेश करके सभी दिशाओं में जा रहे हैं


 उनके कदम अनियमित हैं तथा उनके बिच में कोई कला – संबंध नहीं है | दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को सुव्यवस्थित मार्च करते हुए सोचिए | उनके सभी के कदम एक -दुसरे से मिलते हैं | सामान्य स्रोत जैसे मोमबती या किसी बल्ब से उत्सर्जित तथा लेसर से उत्सर्जित प्रकाश में यही अंतर है | परिवर्णी शब्द लेसर , ( LASER ) से तात्पर्य है : विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन ( light Amplification by Stimulate Emission of Radiation )| 1950 में इसके विकास के साथ ही , इसने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्र में प्रवेश कर लिया | आजकल भौतिकी , रसायन शास्त्र , जीवविज्ञान , आयुर्विज्ञान , शल्य चिकित्सा , इंजीनियरी आदि में इसके अनुप्रयोग हो रहे हैं जो संकेतक कि भांति कार्य करते हैं | आजकल विभिन्न क्षमता के होते हैं जिनकी क्षमता 0.5 mW होती है | इन्हें पेन्सिल लेसर कहते हैं जो संकेतक कि भांति कार्य करते हैं | आजकल विभिन्न क्षमताओं के लेसर उपलब्ध हैं जिनका उपयोग आँख जैसे नाजुक अंगों अथवा आमाशय कि ग्रन्थि के शल्यकर्म के लिए होता है | अंततः कुछ ऐसे लेसर भी हैं जो इस्पात को भी काट अथवा वेल्ड कर सकते हैं | किसी स्रोत से प्रकाश , तरंगों के पैकेट के रूप में उत्सर्जित होता है | किसी सामान्य स्रोत से आने वाला प्रकाश अनेक तरंगों का मिश्रण होता है | विभिन्न तरंगों में कोई कला संबंध भी नहीं होता | इसलिए , ऐसा प्रकाश , यदि किसी द्वारक से भी गुजरता है तो अत्यंत तेजी से विस्तारित होता है तथा पुंज का साइज दूरी के साथ तेज़ी से बढ़ता है | लेसर प्रकाश में प्रत्येक पैकेट का तरंगदैर्ध्य प्राय: समान होता है | तरंग के पैकेट की औसत लम्बाई भी बहुत अधिक होती है | इसका अर्थ है कि लम्बे समय अन्तराल के लिए अच्छा कला सह संबंध होता है | इसके परिणामस्वरूप लेसर पुंज ला अपसरण भरपूर कम हो जाता है | यदि किसी स्रोत में N परमाणु हैं और प्रत्येक परमाणु I तीव्रता का प्रकाश उत्सर्जित कर रहा है , तब किसी सामान्य स्रोत द्वारा उत्पन्न कुल तीव्रता NI के अनुक्रमानुपती होती है , जबकि लेसर स्रोत की अपेक्षा लेसर से प्रकाश अत्यंत तीव्र हो सकता है | जब अपोलो मिशन के अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर  गए तो उन्होंने उसके पृष्ठ पर पृथ्वी की  दिशा की  ओर एक दर्पण रखा | तब पृथ्वी पर वैज्ञानिकों ने एक तीव्र लेसर पुंज इसकी ओर भेजा जिसे चन्द्रमा पर रखे दर्पण द्वारा परावर्तित कराकर पृथ्वी पर वापस ग्रहण किया गया | परावर्तित लेसर पुंज का साइज तथा आने –जाने में लगे सम्पूर्ण समय को मापा गया | इससे अत्यंत यथार्थतत से (a) लेसर पुंज का अत्यंत कम अपसरण तथा (b) पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी , ज्ञात हुई |        

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