फ्रैंक – हर्ट्ज प्रयोग

किसी परमाणु में विविक्त ऊर्जा स्तरों के अस्तित्व की सीधी पुष्टि सन् 1914 में जेम्स फ्रैंक तथा गुस्ताव हर्ट्ज द्वारा की गई। उन्होंने पारे के वाष्प के स्पेक्ट्रम का अध्ययन, वाष्प से विभिन्न गतिज ऊर्जाओं के इलेक्ट्रॉन गुजार कर किया। इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा परिवर्तित करने के लिए उन पर परिवर्ती तीव्रता के विद्युत क्षेत्र लगाए गए। इलेक्ट्रॉनों ने पारे के परमाणुओं से संघ्ट्र किया तथा पारे के परमाणुओं को अपनी ऊर्जा अंतरित कर दी। यह तभी संभव हो सकता है जब इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, पारे के उस ऊर्जा स्तर जिसमें इलेक्ट्रॉन हों तथा इससे ऊँचे किसी रिक्त ऊर्जा स्तर (चित्र देखिए) के बीच ऊर्जा अंतर, से अधिक हो। उदाहरण के लिए, पारे के किसी घिरे हुए ऊर्जा स्तर तथा खाली ऊर्जा स्तर में 4.9 eV का ऊर्जा अंतर है। यदि कोई इलेक्ट्रॉन जिसकी ऊर्जा 4.9 eV या इससे अधिक है, पारे से गुज़रता है तो पारे के परमाणु का कोई इलेक्ट्रॉन टकराने वाले इलेक्ट्रॉन से ऊर्जा अवशोषित कर सकता है तथा ऊँचे स्तर पर उत्तेजित हो सकता है । टकराने वाले इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा इतनी ही मात्रा से कम हो जाएगी।


उत्तेजित इलेक्ट्रॉन बाद में विकिरण उत्सर्जित करके निम्नतम अवस्था पर वापस आ जाएगा । उत्सर्जित विकिरण की तरंगदैर्घ्य होगी :

सीधे मापन द्वारा फ्रैंक तथा हर्ट्ज ने देखा कि पारे के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में इस तरंगदैर्घ्य के संगत एक रेखा है। बोर के परमाणु में विविक्त ऊर्जा स्तरों के मूल विचारों तथा फोटॉन उत्सर्जन के प्रक्रम की प्रायोगिक पुष्टि के लिएफ्रैंक तथा हर्ट्ज़ को 1925 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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