नाभिक का साइज़

जैसा हमने देखा है, रदरफोर्ड वह अग्रणी वैज्ञानिक थे जिन्होंने परमाणु नाभिक के अस्तित्व की परिकल्पना एवं स्थापना की। रदरफोर्ड के सुझाव पर गीगर एवं मार्सडन ने स्वर्ण के वर्क पर ऐल्फ़ा कणों के प्रकीर्णन से संबंधित प्रसिद्ध प्रयोग किया। उनके प्रयोगों से यह स्पष्ट हुआ कि 5.5 MeV गतिज ऊर्जा के ऐल्फ़ा कणों की स्वर्ण नाभिकों के निकटस्थ पहुँच की दूरी लगभग नजदीकी है। स्वर्ण की परत से-कणों के प्रकीर्णन को रदरफोर्ड ने यह मानकर समझाया कि प्रकीर्णन के लिए केवल कूलॉम का प्रतिकर्षण बल ही उत्तरदायी है। चूँकि, धनात्मक आवेश नाभिक में निहित होता है, नाभिक का वास्तविक साइज़ से कम होना चाहिए।

यदि हम 5.5 MeV से अधिक ऊर्जा के-कण प्रयोग करें तो इनके स्वर्ण नाभिकों के निकटस्थ पहुँच की दूरी और कम हो जाएगी और तब प्रकीर्णन अल्प परास नाभिकीय बलों से प्रभावित होने लगेगा और रदरफोर्ड द्वारा किए गए परिकलनों से प्राप्त मान बदल जाएँगे। रदरफोर्ड के परिकलन ऐल्फ़ा कणों एवं स्वर्ण नाभिकों के धनावेश युक्त कणों के बीच लगने वाले शुद्ध कूलॉम प्रतिकर्षण बल पर आधारित हैं। उस दूरी के द्वारा जिस पर रदरफोर्ड के परिकलनों में आने वाले अंतर स्पष्: होने लगते हैं, नाभिकीय साइज़ों के विषय में निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

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